Brihaspati Mantra And Brihaspati Vrat Katha बृहस्पति मंत्र और बृहस्पति देव की कथा

जानिए देवताओं के गुरु बृहस्पति के Brihaspati Mantra Jaap के आश्चर्यजनक फायदे। बृहस्पति मंत्र का नियमित जाप आपका जीवन बदल सकता है, आइये जानते हैं क्यों ये मंत्र इतना उपयोगी है और इससे आपको क्या लाभ प्राप्त होता है।

बृहस्पति देव कौन है

बृहस्पति देव सभी देवताओं के गुरु हैं। नवग्रहों में भी बृहस्पति देव को विशेष स्थान प्राप्त है। बृहस्पति देव एक तपस्वी थे जिन्हे तीक्ष्णशृंग भी कहा जाता है। बृहस्पति देव धार्मिक प्रकृति के होने के साथ साथ अत्यंत शक्तिशाली योद्धा भी हैं। एक बार उन्होंने इंद्र देव को परास्त करके उनसे गायों को छुड़ाया था इसलिए युद्ध में विजय की लालसा रखने वाले वीर भी इनकी पूजा करते हैं ताकि उन्हें विजय की प्राप्ति हो।

बृहस्पति देव देवताओं के पुरोहित हैं और इन्हे यज्ञ पुरोहित भी माना जाता है। इनके बिना यज्ञ सफल नहीं हो सकता इसलिए कोई भी यज्ञ हो उसमे इनका स्मरण और इनको आहुति देने का विधान है।

बृहस्पति देव को प्रसन्न कैसे करें

प्रतिदिन सुबह उठ कर भगवान बृहस्पति देव का स्मरण करें।

बृहस्पतिवार के दिन स्नान करके पीले वस्त्र धारण करें।

प्रत्येक गुरुवार को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीले भोजन भगवान बृहस्पति को अर्पण करें।

पीले खाद्य पदार्थ जैसे चने की दाल, गुड़, हल्दी, केले और पीले फलों का सेवन करें।

बृहस्पति मंत्र का जाप करें।

बृहस्पति देवी की कथा और बृहस्पति देव की आरती सुनें।

गुरुवार के दिन व्रतधारी बाल और दाढ़ी ना बनवाएं और बालों को साबुन से ना धोएं।

Brihaspati Mantra बृहस्पति मंत्र

ॐ बृं बृहस्पतये नमः

ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:।

ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:

ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:

ॐ गुं गुरवे नम:

Brihaspati Dev Aarti बृहस्पति देव की आरती

ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन-छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे।
जेष्टानंद बंद सो-सो निश्चय पावे।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

बृहस्पति देव की कथा Brihaspati Vrat Katha

Brihaspati Vrat Katha

प्राचीन काल में एक प्रतापी और दानवीर राजा था। वह हर बृहस्पतिवार को व्रत रखता था और गरीबों को दान देता था लेकिन राजा की रानी को यह बात पसंद नहीं थी। वह न तो व्रत करती थी और ना ही किसी को एक रुपया दान में देती थी। एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए जंगल में चला गया। रानी अपनी दासी के साथ घर पर ही थीं, उसी समय गुरु बृहस्पतिदेव साधु का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने आए।

रानी ने साधू महाराज से कहा की हे साधु महाराज मैं इस दान पुण्य से तंग आ गयी हूँ कोई ऐसा उपाय बताएं की ये सारा धन नष्ट हो जाये और मैं आराम से रह सकूं।

बृहस्पतिदेव ने कहा, हे देवी, तुम तो बड़ी विचित्र हो। भला संतान और धन से कोई दुखी होता है अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचे का निर्माण कराओ, राहगीरों के लिए जल और धर्मशाला की व्यवस्था कराओ ताकि तुम्हारे दोनों लोक सुधरें परंतु साधु की इन बातों से रानी को खुशी नहीं हुई। उसने कहा कि मुझे ऐसे धन की आवश्यकता ही नहीं है जिसे मैं दान दूं और जिसे संभालने में मेरा सारा समय नष्ट हो जाए।

साधु ने उत्तर दिया यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तुम ऐसा करना कि बृहस्पतिवार को घर लीपकर पीली मिट्‌टी से अपना सिर धोकर स्नान करना, भट्‌टी चढ़ाकर कपड़े धोना, ऐसा करने से आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर वह साधु महाराज वहाँ से चले गये।

साधु ने जैसा बताया, रानी वैसा ही करने लगी। साधु महाराज के कहे अनुसार करते हुए अभी सिर्फ तीन गुरुवार बीतते ही रानी राजा की समस्त संपत्ति नष्ट हो गई और पूरा परिवार भोजन के लिए तरसने लगा। घर की ऐसी दरिद्र स्थिति देख राजा ने कहा की हे रानी मैं किसी दूसरे देश को जाता हूँ ताकि कुछ पैसे कमा सकूं क्यूंकि यहाँ मुझे सब एक राजा के रूप में जानते हैं। ऐसा कहके राजा दूर देश कमाने चला गया और घर में रानी और दासी अकेले रह गई।

एक बार सात दिन रानी और दासी को बिना भोजन किये हुए बीत गए तो रानी ने अपनी दासी से कहा की पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है वो बड़ी धनवान है। तू ऐसा कर उसके पास जा और कुछ मांग ला ताकि कुछ दिन गुजर बसर हो जाये। रानी का आदेश पाकर दासी रानी की बहन के पास गयी।

उस दिन गुरुवार था और रानी की बहन बृहस्पति व्रत कथा सुन रही थी। रानी की दासी वहां पहुंचकर और रानी की सारी व्यथा सुनाई लेकिन रानी की बहन ने कोई जवाब नहीं दिया क्यूंकि बृहस्पति पूजा के दौरान ना उठते हैं ना बोलते हैं। ऐसा देखकर रानी की दासी वहां रुके बिना ही वापस चली आई। दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी। सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा।

उधर, रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी, परंतु मैं उससे नहीं बोली, इससे वह बहुत दुःखी हुई होगी। कथा सुनकर और पूजन समाप्त करके वह अपनी बहन के घर आई और कहने लगी हे बहन मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी। तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी परंतु जब तक कथा होती है तब तक न तो उठते हैं और न ही बोलते हैं इसलिए मैं नहीं बोली। कहो दासी क्यों गई थी?

रानी बोली: बहन तुमसे क्या छिपाऊं हमारे घर में खाने को अनाज नहीं था। ऐसा कहते-कहते रानी की आंखें भर आई। उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने तक की बात अपनी बहन को विस्तार पूर्वक सुना दी।

रानी की बहिन बोली: देखो बहन भगवान बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं। देखो शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो। पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ पर बहन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया। यह देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई।

दासी रानी से कहने लगीहे रानी! जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं इसलिए क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाए ताकि हम भी व्रत कर सकें। तब रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा।

उसकी बहन ने बताया, बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलाएं, व्रत कथा सुनें और पीला भोजन ही करें। इससे बृहस्पतिदेव प्रसन्न होते हैं। व्रत और पूजन विधि बताकर रानी की बहिन अपने घर को लौट गई।

सात दिन के बाद जब गुरुवार आया, तो रानी और दासी ने व्रत रखा। घुड़साल में जाकर चना और गुड़ लेकर आईं। फिर उससे केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया। अब पीला भोजन कहाँ से आए इस बात को लेकर दोनों बहुत दुःखी थे।

चूंकि उन्होंने व्रत रखा था, इसलिए बृहस्पतिदेव उनसे प्रसन्न थे। इसलिए वे एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में सुन्दर पीला भोजन दासी को दे गए। भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया। उसके बाद वे सभी गुरुवार को व्रत और पूजन करने लगी। बृहस्पति भगवान की कृपा से उनके पास फिर से धन-संपत्ति आ गई, परंतु रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करने लगी।

तब दासी बोली: देखो रानी! तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था, इस कारण सभी धन नष्ट हो गया और अब जब भगवान बृहस्पति की कृपा से धन मिला है तो तुम्हें फिर से आलस्य होता है।

रानी को समझाते हुए दासी कहने लगी कि बड़ी मुसीबतों के बाद हमने यह धन पाया है, इसलिए हमें दान-पुण्य करना चाहिए, भूखे मनुष्यों को भोजन कराना चाहिए, और धन को शुभ कार्यों में खर्च करना चाहिए, जिससे तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा, स्वर्ग की प्राप्ति होगी और पितर प्रसन्न होंगे। दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी, जिससे पूरे नगर में उसका यश फैलने लगा।

तो ये थी बृहस्पति भगवान की कथा। हमें उम्मीद है की आपको Brihaspati Mantra पर हमारा ये लेख पसंद आया होगा। रोज नयी जानकारियों के लिए हमारा न्यूज़ लेटर सब्सक्राइब करना ना भूलें।

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