कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो चुकी है ऐसा माना जाता है कि कांवड़ यात्रा करना बहुत ही पुण्य का काम है और इससे शिवलोक की प्राप्ति होती है. आइए हम आज आपको बताते हैं कि आखिर यह कावड़ यात्रा क्या है इसकी शुरुआत कैसे हुई और आखिर इस कावड़ यात्रा का इतना ज्यादा महत्व क्यों है. साथ ही हम आपको यह भी बताएंगे की कावड़ यात्रा कितने प्रकार की होती है और इसे करने के लिए किन किन नियमों का पालन किया जाना चाहिए.
कांवड़ यात्रा की शुरुवात कैसे हुई ?
दोस्तों कांवड़ यात्रा के बारे में जाने के लिए सबसे पहले हम आपको इतिहास में हजारों वर्ष पहले त्रेता युग में लेकर जाना चाहेंगे. आपने यह तो सुना ही होगा कि त्रेता युग में समुद्र मंथन हुआ था जिसमें से कई प्रकार के रत्न और साथ ही साथ विष भी प्राप्त हुआ था. सभी देवताओं ने अमृत, रत्न और कीमती पदार्थों को ग्रहण कर लिया था. लेकिन सिर्फ एक विष ही था जो किसी ने ग्रहण नहीं किया था. अगर यह विष पृथ्वी पर या समुद्र में डाल दिया जाता तो इससे पूरी पृथ्वी और समुद्र का विनाश हो जाता और धरती पर कुछ भी जीवित नहीं बचता.
इस समस्या से मुक्ति के लिए भगवान शिव जी ने जिन्हें देवों का देव कहा जाता है वह आगे आए और उन्होंने इस विष को पी लिया. शिवजी को पीने के वजह से विष तो समाप्त हो गया लेकिन शिवजी के गले में जलन होने लगी और उनके गले का रंग नीला पड़ गया. इसी वजह से शिव जी को नीलकंठ भी कहा जाता है लेकिन जब शिवजी के गले में विष पीने से जलन होने लगी तब शिव के परम भक्त रावण अपनी कांवड़ में पवित्र जल लेकर आए और उसी जल से शिव जी को स्नान कराया जिससे शिव जी के गले की जलन कम हुई.
तभी से शिव जी के शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत हुई जिसे आज हम कावड़ यात्रा के माध्यम से पूरा करते हैं. यह तो कहानी हुई कावड़ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई इस बारे में. आइए हम आपको बताते हैं कि आखिर यह कावड़ यात्रा कितने प्रकार की होती है और इसके लिए क्या-क्या नियम करने पड़ते हैं.
कावड़ यात्रा कब होती है ?
कावड़ यात्रा हर साल सावन के महीने में की जाती है श्रावण महीने में श्रावण महीने को शिवजी का महीना कहा जाता है. सावन की शुरुआत होने के साथ ही कावड़ यात्रा प्रारंभ हो जाती है कंवर यात्रा को लेकर शिव भक्तों में काफी उल्लास देखने को मिलता है. एक आंकड़े के मुताबिक प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में शिवभक्त कावड़ लेकर हरिद्वार आते हैं और यहां से गंगाजल लेकर अपने अपने क्षेत्र के शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं.
शास्त्रों में कावड़ यात्रा के बारे में कई सारी जानकारियां उपलब्ध है. हर कांवरिया को कावड़ यात्रा के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन करना होता है. ऐसी मान्यता है कि कावड़ यात्रा के जो नियम है उनमें किसी भी तरह का बदलाव नहीं होना चाहिए. चलिए हम आपको बताते हैं कि कावड़ यात्रा का क्या महत्व है और कितने प्रकार की कावड़ यात्रा की जाती है.
वेद पुराणों में यह लिखा गया है की कावड़ यात्रा भगवान शिव को प्रसन्न करने का एक सहज तरीका है. कावड़ यात्रा के दौरान सभी शिवभक्त बांस की लकड़ी पर दोनों तरफ टोकरिया रखकर गंगा नदी के तट पर जाते हैं और टुकड़ों में गंगाजल भरकर अपने अपने क्षेत्रों में लौट जाते हैं.
इस गंगाजल के साथ वह कावड़ यात्रा करते हैं और अपने क्षेत्र के शिव मंदिरों में जाकर भगवान शिव को जलाभिषेक करते हैं. कावड़ यात्रा करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है और धन धान्य में वृद्धि होती है. शास्त्रों में कांवर यात्रा को अश्वमेध यज्ञ के समान महान बताया गया है. अब आपको कावड़ यात्रा के कुछ नियमों के बारे में बताते हैं. कावड़ यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार का नशा मांस मदिरा अथवा तामसिक भोजन वर्जित होता है.
कांवर यात्रा पैदल चलकर की जाती है यात्रा की शुरुआत से लेकर और शिवलिंग पर जल चढ़ाने तक कांवरिया को पैदल ही यात्रा करनी होती है. इसमें किसी भी प्रकार के वाहन का प्रयोग वर्जित है. कावड़ यात्रा में गंगा नदी या फिर किसी पवित्र नदी के जल का प्रयोग होता है. कावड़ के लिए किसी कुँए या तालाब का जल वर्जित है. कावड़ को हमेशा स्नान करने के बाद ही स्पर्श किया जाना चाहिए और इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि कावड़ यात्रा के दौरान चमड़े का स्पर्श ना हो.
कावड़ यात्रा के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि कावड़ को किसी भी स्थिति में जमीन या फिर किसी चबूतरे पर ना रखें. अगर आप किसी वजह से विश्राम के लिए रुकते हैं तो कावड़ को हमेशा स्टैंड या फिर किसी डाली पर लटका कर रखना चाहिए. अगर किसी भूलवश आप कावड़ को जमीन पर रख देते हैं तो आपको फिर से कावड़ में पवित्र जल भरना होगा. अन्यथा आप की कावड़ यात्रा अधूरी मानी जाएगी.
कावड़ यात्रा करते समय आपको पूरे रास्ते बम बम भोले या फिर शिव मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए और कावड़ किसी भी स्थिति में किसी व्यक्ति के ऊपर से लेकर ना जाए अर्थात अगर कोई व्यक्ति जमीन पर लेटा हुआ हो तो उसे लाँघकर आपको कावड़ यात्रा नहीं करनी चाहिए.
चलिए हम आपको बताते हैं कि कावड़ यात्रा कितने प्रकार की होती है. कावड़ यात्रा चार प्रकार की होती है और हर यात्रा के अपने नियम और महत्व होते हैं. यह चार कावड़ यात्रा इस प्रकार हैं.
सामान्य कावड़, डाक कावड़, खड़ी कावड़ और दांडी कावड़
हर शिव भक्त अपने अपने सामर्थ्य और इच्छा के मुताबिक इनमें से एक प्रकार की यात्रा का चुनाव करता है. और हर प्रकार की यात्रा के लिए उसी तरीके से तैयारी की जाती है.
सामान्य कावड़
सामान्य कावड़ वह होता है जिसमें शिवभक्त कावड़ यात्रा के दौरान आराम कर सकते हैं. जगह-जगह कांवरियों के लिए पंडाल बनाए गए होते हैं जहां वह अपनी कावड़ को रख कर आराम कर सकते हैं.
डाक कावड़
डाक कावड़ वह होता है जिसमें कांवरिया बिना रुके लगातार यात्रा करते हैं अर्थात जहां से उन्होंने गंगाजल भरा है और जहां उन्हें जलाभिषेक करना है वहां तक उन्हें लगातार चलते रहना होता है. सभी मंदिरों में डाक कांवरियों के लिए विशेष इंतजाम किए जाते हैं ताकि अगर कोई डाक कांवरिया आए तो वह बिना रुके शिवलिंग तक पहुंचकर अपनी यात्रा पूरी कर सके.
खड़ी कावड़
खड़ी कावड़ के दौरान कांवरिया की मदद करने के लिए कोई ना कोई व्यक्ति उसके साथ होता है. जब कांवरिया आराम करता है तब उनके सहयोगी अपने कंधे पर उनके कावड़ को लेकर चलते रहते हैं.
दांडी कावड़
दांडी कावड़ यात्रा बहुत मुश्किल होती है और इस यात्रा को करने में 1 महीने से भी ज्यादा का समय लग सकता है. गंगा तट से लेकर शिव मंदिर तक कांवरिया को दंडोति करते हुए परिक्रमा करनी होती है.
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